हर तरफ सिर्फ अँधेरा छाया था ,
तेज़ बेहती सर्द हवाएँ ,
क्षमा की रौशनी से
वोह जलती हुयी फिजाएं
इसी लौ को जलाए रखने के लिए,
रात भर हमने अलाव तापा ....
कुछ यादों के सुरों से ,
तोह कुछ हसी की लहरों से
मैंने जब अपने हाथो से,
बातों की पुरानी टहनिया तोड़ी ,
तोह उसने भी अपने लकीरों के ,
कुछ नए राज़ खोले
इन्ही यादों की लौ को जलाए रखने के लिए
रात भर हमने अलाव तापा .....
जो कुछ भी मिला इस उगते बदन पर हमे ,
सब डाल दिया जलते अलाव में उसे
और इसी तरह
दोनों जिस्मो के इंधन को जलाये रखा हमने
इसी प्यार की लौ को जलाये रखने के लिए
रात भर हमने अलाव तापा .....